Tuesday 15 September 2015

रचनाकार rachanakar

हाँथो से तस्वीर उतरी

उंगुलियों ने रंग पहना

दिल के कैनवास पर

ज़िन्दगी एक नई दौड़ी

जुगनू की रोशनी में...

लिखी रेत पे कविता

लिखा नाम तुम्हारा

लिखा क़लमा...

परवाज़ रूह हो गयी

जुगनू की रोशनी में...

Sunday 13 September 2015

माँ

माँ, मैं शून्य था।

तुम्हारी कोख में आने से पहले

शून्य आकार था। एकदम शून्य

आपने जीवन दिया मुझे...

अंश बना तुम्हारा...

अनेक उपकार हैं तुम्हारे

मैं आहवान करता हूँ माँ तुम्हारा!



मनु वैरागी एक कविता

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Friday 11 September 2015





मेरा ख्‍वाब भी तू, मेरी हकीकत भी तू
मेरी आरजू भी तू मेरी जुस्‍तजू भी तू
साँझ भी तू, सवेरा भी तू
मेरी धड़कन आवाज दिल सब तू
मेरा अर्ज भी तू, मेरा मर्ज भी तू
मेरा दरिया भी तू मेरा समन्‍दर भी तू
मेरा जिस्‍म भी तू, मेरी रूह भी तू
मेरा सवाल भी तू, मेरी जवाब भी तू
अहसास भी तू, जज्‍बात भी तू
मेरी राह भी तू, मंजर भी तू
मेरे गीत भी तू मेरे मीत भी तू
मेरा इश्‍क भी तू मेरा अश्‍क भी तू

अब तू ही तू, हर तरफ है।

एक कलाम







लिखना चाहता हूँ कागज़ पर
कलाम तुम्हारे बारे में...
शब्द नहीं हैं मेरे पास
गाथा गायी तेरी अग्नि ने
समन्दर की रेत पर
यों ही चलते रहना अब्बा की नाव की तरह
लिखना चाहता हूँ कागज़ पर
कलाम तुम्हारे बारे में...
शब्द नहीं हैं मेरे पास
बनकर एक नया जन्म लेना तुम
माँ के त्याग का गुणगान करना
रहकर अब्बा संग तुम परछाईं बनना
लिखना चाहता हूँ कागज़ पर
कलाम तुम्हारे बारे में...
शब्द नहीं हैं मेरे पास
कलम के कलाम हों तुम
प्रकृति के रखवाले हो तुम
जूही के फूल हो तुम
लिखना चाहता हूँ कागज़ पर
कलाम तुम्हारे बारे में...
शब्द नहीं हैं मेरे पास
इंसान के रूप में भगवान हो
कौन कहता हैं भगवान नहीं होते
लिखना चाहता हूँ कागज़ पर
कलाम तुम्हारे बारे में...
शब्द नही हैं मेरे पास
बताते जाओ मुझे मैं कहा मिलूँ तुम्हें
तुमने कहा था रातों के सपनों में नहीं
दिन के उजाले खुली आँखों के सपनों में
लिखना चाहता हूँ कागज़ पर
कलाम तुम्हारे बारे में...
शब्द नहीं हैं मेरे पास
यही इंतज़ार करुँ रामेश्वरम के तट पर
मस्जिद की चादर पर या मन्दिर की गेट पर
लिखना चाहता हूँ कागज़ पर
कलाम तुम्हारे बारे में...
शब्द नहीं हैं मेरे पास
कहते हैं की बंज़र जमी में पेड़ नहीं होते
गलत हैं कहने वाले मैंने तो तुम्हें फूल उगाते देखा।
एक आदर्श हों
जो तुम्हारे बताये  पथ पर चलें।
एक शिक्षक हो
जिनसे ये दुनिया सीखी हैं।
लिखना चाहता हूँ कागज़ पर
कलाम तुम्हारे बारे में...
शब्द नहीं हैं मेरे पास
तुम आत्मा हो परमात्मा की
तुम जीवन हो शून्य धरा की

कलम के कलाम हो तुम 

Tuesday 8 September 2015

कलम ने रो रो के दुहाई दे दी

मेरा हर लफ्ज़ दर्द उगलता हैं

मेरा हर लफ्ज़ सिसक सिसक के रोता हैं।

लिखा था कागज़ के टुकड़ो पर...

कलम ने रो रो के दुहाई दे दी।